Monday, September 1, 2008

कैसे पढाऊँ जवान मस्तानी को?

मै २४ साल का एक बेरोजगार नौजवान हूँ। अपने खर्चे निकालने के लिए मैं लोगों के घरों पर जाकर उनके बच्चों को पढाता हूँ। एक दिन मेरे दरवाजे पर पड़ोस में रहनेवाले रमेश जी आए। कहने लगे की उनकी बहू को किसी ने सरकारी नौकरी लगवा देने का वादा किया है। इसलिए अगर मै उसे पढाना शुरू कर दूँ तो बहुत ही अच्छा होगा।
रमेश जी का प्रस्ताव सुनते ही मेरे नसों में खून की चाल बढ़ गई। पूरा मोहल्ला जानता था उनकी बहू कितनी खूबसूरत थी। लगभग सभी नौजवान उस बहू के बारे में झूठी-सच्ची कहते ही रहते थे।
कइयों का विचार कि बहू रमेश जी के साथ सोती थी।
रमेश जी ने मुझे अच्छा पैसा देने का वादा किया। वैसे वे कम पैसे देते तो भी शायद मैं इस बारे में उनसे ना तो नहीं कहता। तय हुआ कि मैं दोपहर के दो बजे से बहू को पढाने उनके घर पर आ जाऊंगा।
अगले दिन दोपहर के दो बड़ी मुस्किल से बजे। मै बहुत पहले से ही तैयार होकर बस घड़ी ही देख रहा था।
मैं दो बजे से करीब पन्द्रह मिनट पहले रमेश जी के दरवाजे पर पहुँच गया। दरवाजा रमेश जी ने ही खोला। मुझे थोडी निराशा हुई। मैं सोच रहा था की बहू दरवाजे पर ही मिल जायेगी। लेकिन यहाँ तो वह कमरे में भी दिखाई नहीं दे रही थी।
मुझे एक कुर्सी पर बैठने का इशारा करके रमेश जी भीतर चले गए। मुझे दुबारा तकलीफ हुई जब वे ख़ुद ही मेरे लिए पानी लेकर आए। मैं सोचने लगा आख़िर यह बहू भला क्या कर रही है।
जब मैंने पानी पी तब रमेश जी ने भीतर को इशारा करते हुए कहा की बहू मेरी रह देख रही है।
अन्दर के कमरे में जाकर मैंने बहू को पहली बार नजदीक से देखा।
वह बहू क्या थी एक बाला ही थी। जब मैं कमरे में दाखिल हुआ तब वह अपने बच्चे को अपना स्तन पिला कर फारिग ही हुई थी। मेरी मौजूदगी का अनुभव करके वह अपने स्तन को ब्लाउज के भीतर डालते हुए मेरी तरफ़ मुडी और मुझे नमस्कार किया। मैंने उसके नमस्कार का जवाब तो दिया पर मेरी निगाह उसके ब्लाउज पर ही टिकी रही।
मैंने कभी भी इतनी मस्त और गुलाबी चूच के दर्शन नहीं करे थे। कहना न होगा की मेरी कनपटी सुर्ख हो गई।
खैर! हम व्यावहारिक रूप से जिस बात क लिए आए थे उसकी चर्चा शुरू हुई। मैंने उसे कुछेक वाक्य लिखने को कहा ताकि मुझे पता तो चले सकी स्थिति क्या थी और मुझे कहाँ से शुरू करना था।
बहू की हालत मेरी उम्मीद से भी बदतर थी। उसने वाक्य तो क्या एक वाक्यांश तक ठीक से नहीं लिखा। नोट बुक से नजर उठा के मैंने उससे और भी नजदीक आने का इशारा किया ताकि मैं करेक्शन कर के दिखा सकूँ। बहू नजदीक चली आयी और मैंने नोट बुक को जानबूझ कर अपनी गोद में कुछ इस प्रकार से रखा की उसे मेरे तने हुए लंड की ख़बर हो जाए।
मैं अपने मकसद में कामयाब रहा। जब करेक्शन की तरफ़ इशारा करते हुए उसके चहरे को देखा तो पाया की उसकी नजरें मेरी गोद पर ही हैं। लेकिन वह नोट बुक को नहीं देख रही थी।
मैंने हँसते हुए कहा कि अगर इतनी गलतियाँ उसके नोट बुक में मिली तो मुझे उसके कान भी खींचने होंगे। बुरा तो नहीं लगेगा।
'बिल्कुल नहीं, ' एक मर्दानी आवाज आई, 'ऐसा तो होना ही चाहिए
मैंने देखा रमेश जी अचानक कमरे में आ गए थे। मैं सोचने लगा कि यह ठीक नहीं है। लेकिन इस बारे में मैं क्या कहता?
कहा तो बहू ने भी कुछ नहीं। लेकिन उसने नजर उठा के जिस तरीके से ससुर को देखा, उससे कुछ कहना बाकी भी नहीं रहा। ससुर जी ने तुरत ही कमरा छोड़ दिया। मैं कुछ बोला नहीं। सिर्फ़ बहू की छाती को देखते हुए सोचता रहा की उसके चूंच मेरी हथेलियों में कैसे लगेंगे।
'तुम्हारा नाम क्या है?' मैनें अचानक पूछा।
'रेखा।' कहते हुए उसने अपने पल्लू को सम्हालना चाहा जो थोड़ा नीचे सरक आया था।
मैंने पल्लू पकड़ लिया और बोला 'इन्हें ऐसे ही रहने दो, अच्छे लग रहे हैं।'
वह मुस्कुराई और कहने लगी, 'तुम मर्दों को इसके सिवा भी कुछ अच्छा लगता है क्या?'
फ़िर उसने अपना पल्लू गोद में गिर जाने दिया और नोटबुक में कुछ लिखने लगी। मेरा लंड तना जा रहा था। मैंने हिम्मत करके अपनी कांपती ऊँगलियाँ उसके ब्लाउज के बटनों पर रख दीं।
बहू ne najaren उठा के देखा। फ़िर muskarayee और kahne लगी: तुम क्या सोचते हो boodha तुम्हें maja करने देगा? वह कभी भी kamre में आ सकता है।

(अभी जारी है।)

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-सहेली